How tech created a ‘Recipe for Loneliness’

हावर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्चर लौरा मार्सियानो ने इस गर्मियों में 500 किशोरों का इंटरव्यू लिया ताकि तकनीक और अकेलेपन के बीच संबंध को समझा जा सके। नतीजे बेहद हैरान करने वाले थे।

अध्ययन के दौरान, किशोरों से उनके सोशल इंटरैक्शन के बारे में दिन में तीन बार सवाल पूछे गए। इसमें आधे से ज्यादा किशोरों ने बताया कि उन्होंने पिछले एक घंटे में किसी से भी बातचीत नहीं की थी, चाहे ऑनलाइन हो या आमने-सामने।

बढ़ती तकनीक और अकेलेपन का प्रसार

अमेरिका में लोग अब पहले से ज्यादा समय अकेले बिता रहे हैं, उनकी दोस्ती के संबंध भी कमजोर हो रहे हैं और वे अपने समुदायों से कटी हुई महसूस कर रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार, हर दो में से एक व्यक्ति अकेलेपन का अनुभव कर रहा है, जिसे अमेरिका के सर्जन जनरल डॉ. विवेक मूर्ति ने पिछले साल एक महामारी घोषित किया था।

डॉ. मूर्ति का कहना है कि स्मार्टफोन और सोशल नेटवर्किंग ऐप्स के कारण लोगों के बातचीत करने के तरीके पूरी तरह से बदल गए हैं। जहां पहले फोन कॉल्स या आमने-सामने की बातचीत होती थी, अब टेक्स्ट मैसेज से बातचीत सीमित हो गई है। सोशल मीडिया जैसे इंस्टाग्राम और टिकटॉक पर लोग अपने जीवन को प्रदर्शित करते हैं, लेकिन वे शायद हमेशा अपने असली रूप में नहीं होते हैं।

सोशल मीडिया और तुलना का खतरा

सोशल मीडिया पर समय बिताते समय, लोग अक्सर दूसरों की तुलना में खुद को कमतर महसूस करते हैं। यह मनोवैज्ञानिकों द्वारा बताया गया है कि लोग ऑनलाइन अपने पोस्ट्स पर मिले लाइक और कमेंट्स की संख्या से दूसरों से तुलना करते हैं, जिससे जलन और कमतरी की भावना बढ़ती है। इसके साथ ही, लोग दूसरों की ग्लैमरस जिंदगी देखकर यह महसूस करते हैं कि वे पीछे रह गए हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह तुलना हमेशा बुरी नहीं होती। कभी-कभी यह आपको बेहतर बनने के लिए प्रेरित भी कर सकती है। लेकिन जब तुलना जलन और FOMO (फियर ऑफ मिसिंग आउट) जैसी भावनाओं को बढ़ावा देती है, तो यह अकेलेपन को बढ़ा सकती है।

क्या टेक्स्टिंग है असली जुड़ाव में बाधा?

एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि टेक्स्ट मैसेजिंग जैसे संचार माध्यम अकेलेपन को बढ़ा सकते हैं। कई किशोर यह महसूस करते हैं कि वे सिर्फ टेक्स्ट मैसेज पर निर्भर होकर अपने रिश्तों में गहराई नहीं जोड़ पाते। वीडियो कॉल्स और आवाज के माध्यम से बातचीत करना एक मजबूत जुड़ाव बना सकता है।

वीडियो स्ट्रीमिंग और बिंज-वॉचिंग का प्रभाव

महामारी के दौरान कई लोगों ने अपने खाली समय में बिंज-वॉचिंग का सहारा लिया, जो लंबे समय तक अकेलेपन का कारण बन सकता है। लगातार वीडियो देखते रहना न केवल मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकता है बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है।

आगे का रास्ता

आज की तकनीक और अकेलेपन के बीच का रिश्ता एक बदलता हुआ विषय है। आने वाले समय में जनरेटिव एआई टूल्स का उपयोग भी अकेलेपन से निपटने का एक नया तरीका बन सकता है, लेकिन इसमें सावधानी बरतने की जरूरत होगी।

इस लेख में अकेलेपन, सोशल मीडिया पर तुलना, और टेक्स्टिंग की समस्याओं को समझने का प्रयास किया गया है ताकि लोग जान सकें कि तकनीक का उपयोग किस प्रकार किया जाए ताकि वे इस मानसिक स्थिति से बच सकें।

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